अब ‘कोरोना वायरस’ आपकी ईमानदारी और इंफ्रास्ट्रक्चर की परीक्षा लेगा!

आप सोच रहे होंगे ये क्या है? आगे पढ़ें! कोरोना वायरस की वजह से इन दिनों युवाओं के बीच नए बयान सुनने को मिल रहे हैं। आप उन्हें उनके फोन पर किसी से बोलते हुए सुन सकते है कि ‘अरे मैं डब्ल्यूएफएच  (WFH) कर रहा हूं’! अब आप सोच रहे होंगे कि इसका मतलब क्या होता है? WFH का मतलब वर्क फ्रॉम होम होता है। यदि आप उनकी और बातें सुनेंगे तो आपको WFH का नकारात्मक पक्ष भी पता चल जाएगा।


एक तो बिजली कटौती होती है, ऊपर से इंटरनेट चलाने में भी दिक्कतें आने लगीं तो WFH को लेकर जागा उत्साह सप्ताहभर में फीका पढ़ गया। कम से कम बेंगलुरु जैसे शहर में तो ऐसा हुआ है, जहां हमारे देश के ज्यादातर युवा तकनीशियन काम करते हैं। बेंगलुरु ही वह जगह है, जहां कोरोना वायरस के डर से युवाओं ने WFH के विचार को बढ़ावा दिया। सिर्फ बेंगलुरु में ही नहीं, बल्कि सिंगापुर में भी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) गेटवे पर पड़े बोझ के कारण होम इंटरनेट की गति धीमी हो गई है। वास्तव में तकनीशियनों का बड़ा समूह WFH कर रहा है, लेकिन ऐसी स्थिति में बढ़ने वाले लोड का परीक्षण कभी किया ही नहीं गया। अधिकांश घरेलू इंटरनेट कनेक्शनों में कुछ विशेष प्रकार के काम का लोड उठाने की क्षमता नहीं होती है।


फिर बातचीत जैसे अन्य मुद्दे भी हैं, क्योंकि टीम के सभी सदस्यों का हर समय ऑनलाइन मिल पाना मुश्किल हो रहा है। कंपनियों ने अपने इंजीनियरों को इंटरनेट का उपयोग और WFH वाले सहकर्मियों की उपलब्धता का शेड्यूल देना शुरू कर दिया है। यहां तक कि एचआर विभाग प्रत्येक कर्मचारी के आवासीय क्षेत्र, केबल ऑपरेटर्स द्वारा दी गई वीपीएन ऊर्जा और कितने देर के लिए इंटरनेट बाधित होता है, इन सभी को स्कैन कर रहा है और उसी के अनुसार कर्मचारियों का WFH शेड्यूल तय कर रहा है। किसी भी आईटी कंपनी में अब सबसे अधिक व्यस्त विभाग एचआर हो गया है। अब टीम के लीडर्स को यह सवाल परेशान कर रहा है कि इतनी बाधाओं के साथ पहले जैसी प्रॉडक्टीविटी कैसे प्राप्त करें। संक्षेप में कहें तो बड़े शहर कोरोना वायरस इन्फ्रास्ट्रक्चर टेस्ट में असफल हो रहे हैं!  इन सब परेशानियों के बीच हमें भी अपने काम के प्रति ईमानदारी (ऑनेस्टी) बरतने और सत्यानिष्ठा (इंटेग्रिटी) की परीक्षा से गुजरना होगा। अहमदाबाद स्थित जेम्स जेनेसिस इंटरनेशनल स्कूल, जो सीबीएसई और कैम्ब्रिज बोर्ड संबद्ध है, में जापान, कोरिया, अमेरिका, फ्रांस और ईरान सहित 20 देशों के छात्र पढ़ते हैं। गुजरात में सोमवार तक एक भी कोरोना वायरस का मामला सामने नहीं आया फिर भी सरकार ने बच्चों की सुरक्षा की खातिर स्कूल को इस महीने के आखिर तक बंद करने का फैसला लिया है। बावजूद इसके छात्रों को उनके सालभर के प्रदर्शन के आधार पर अंक देने के बजाय घर पर माता-पिता की देखरेख में परीक्षा लेने का फैसला किया है। यह फैसला इसलिए किया गया, क्योंकि छात्रों ने वार्षिक परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत की थी। 


इसी सोमवार से कक्षा तीन से आठवीं तक के छात्रों ने घर पर अपनी वार्षिक परीक्षा देनी शुरू कर दी है। यह केवल उनके शैक्षिक कौशल का परीक्षण नहीं है, बल्कि उनकी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा की भी परीक्षा होगी। स्कूल प्रशासन और शिक्षकों ने पहले ही 250 लिफाफों में पुस्तकें, नोट्स, स्टडी मटेरियल और आंसर शीट्स पैक कर दी हैं। प्रत्येक छात्र के घर तक कैसे पहुंचा जाए, इसके लिए विभिन्न मार्गों का चार्ट भी बना लिया गया है। परीक्षाएं सुबह 11 से 1 बजे के बीच होंगी। माता-पिता भी स्कूल के बनाए इस नए नियम का साथ दे रहे हैं, स्कूल में बच्चे सीसीटीवी की निगरानी में परीक्षा देते हैं, लेकिन ऐसे हालात में परिजन की निगरानी में घर पर परीक्षा देंगे। परीक्षा खत्म होने के बाद पैरेंट्स को आंसर शीट्स तब तक संभालकर रखनी होगी, जब तक शिक्षक इन्हें ले नहीं जाते। यह सिर्फ आपके बच्चों के ज्ञान का परीक्षण नहीं है, बच्चों के साथ-साथ माता-पिता की ईमानदारी और सच्चाई के प्रति दृढ़ निष्ठा की भी परीक्षा है।


फंडा ये है कि बेंगलुरु और सिंगापुर इंफ्रास्ट्रक्टर परीक्षण में असफल हो सकते हैं, लेकिन माता-पिता के रूप में हम ऐसी थका देने वाली स्थितियों में भी ईमानदारी, भरोसा और सच्चाई की परीक्षा में असफल नहीं हो सकते। हमारा ये बर्ताव हमारे बच्चों को भविष्य में सफल बनाने में मदद करेगा।


 

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