बस्ती की पहचान इतनी सख्त हो चली है कि गूगल पर ‘रविदास कैंप’ सर्च करो तो निर्भया के दोषियों के चेहरे दिखाई पड़ते हैं

दिल्ली के रविदास कैंप से. आरके पुरम इलाके में साफ-सुथरी और चौड़ी सड़कों से सटी एक छोटी-सी झुग्गी बस्ती है- रविदास कैंप। 90 के दशक की शुरुआत में बसी इस बस्ती की आज सबसे बड़ी पहचान एक ही है- निर्भया के 6 दोषियों में से 4 इसी बस्ती में रहते थे। बस्ती की यह पहचान इतनी सख्त हो चली है कि गूगल पर भी ‘रविदास कैंप’ सर्च करने पर निर्भया के दोषियों के चेहरे ही दिखाई पड़ते हैं।


आरके पुरम सेक्टर-2 स्थित यह बस्ती ‘बिजरी खान के मकबरे’ से बिलकुल सटी हुई है और इसमें करीब ढाई सौ परिवार रहते है। बेहद पतली-संकरी गलियों और खुली नालियों वाली इस बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश और राजस्थान से आए हुए हैं। बस्ती की शुरुआत में कुछ दुकानें और कुछ फास्ट-फूड के स्टॉल लगे हुए हैं। इनमें एक स्टॉल राजवीर यादव का भी है, जो इसी बस्ती के रहने वाले हैं। वे कहते हैं, ‘निर्भया मामले के बाद इस बस्ती की पहचान यही हो गई कि वो अपराधी यहां के रहने वाले थे। अब हम चाहें भी तो इस पहचान को मिटा नहीं सकते।’


2012 में जब निर्भया के साथ बर्बरता हुई थी और पड़ताल में सामने आया था कि दोषी इस बस्ती के रहने वाले हैं तो लोगों का आक्रोश बस्ती के अन्य लोगों पर भी फूटने लगा था। यहां के निवासी विश्वकर्मा शर्मा बताते हैं, ‘उस घटना के कुछ ही दिनों बाद एक दिन एक आदमी यहां बम लेकर चला आया था। उसने आरोपी राम सिंह का पता पूछा और घर के पास पहुंचकर बम लगा दिया। लोगों को जब इसकी भनक लगी तो पुलिस बुलाई। फिर बम निरोधक दस्ते ने आकर हालात को काबू में लिया। उसके बाद काफी समय तक यहां पुलिस सुरक्षा रखी गई।’


16 दिसंबर की उस कुख्यात घटना के बाद इस बस्ती की पहचान पूरी तरह से बदल गई। यहां के रहने वाले, जहां कहीं भी जाते। लोग उनसे निर्भया मामले पर ही तरह-तरह के सवाल पूछने लगते। विश्वकर्मा शर्मा कहते हैं, ‘उस वक्त तो कई बार ऐसा होता कि मैं किसी सरकारी दफ्तर जाता तो अधिकारी पहचान पत्र पर मेरा पता देखते ही मुझे अलग बुला लेते और पूछने लगते कि उस घटना के बारे में बताओ, दोषियों के बारे में बताओ, वो कैसे लड़के हैं आदि। लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा। अब इन दोषियों को फांसी हो रही है तो मीडिया का आना-जाना एक बार फिर बढ़ गया है।’


गुरुवार की शाम, जब निर्भया के दोषियों को फांसी होने में 12 घंटे से भी कम समय रह गया था, बस्ती का माहौल आम दिनों जैसा ही बना हुआ था। हालांकि, पुलिस की आवाजाही यहां बीते कुछ दिनों से कुछ बढ़ ज़रूर गई थी। पुलिस कई बार बस्ती में आकर दोषियों के परिजनों को तिहाड़ जेल लेकर जाती रही ताकि वे आखिरी समय में उनसे मिल सकें।


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