नई दिल्ली. तिब्बत के बौद्ध धार्मिक गुरु दलाई लामा ने गुरुवार को कहा कि भारत की अहिंसा, दयालुता, प्रेम और करूणा की प्राचीन परंपरा से आज विश्व को सीखने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “विश्व के कई हिस्सों में शिया और सुन्नी मुसलमान आपस में लड़ रहे हैं लेकिन भारत में ऐसी कोई स्थिति नहीं है। भारत की प्राचीन संस्कृति और परंपरा जैसी उच्च मूल्यों वाली शिक्षा प्रणाली विश्व को अपनाने की आवश्यकता है। भारत में बिना किसी बंधन के वास्तविक करूणा नजर आती है।”
84 वर्षीय दलाई लामा ने गुरुवार को 24वें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन मेमोरियल व्याख्यान को संबोधित करते हुए कहा, “धार्मिक शिक्षा के स्थान पर अपनी शिक्षा प्रणाली में अहिंसा, प्रेम, दयालुता और करूणा जैसे मानसिक गुणवत्ता वाले विषयों को शामिल किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि आज पूरे विश्व में लोग धर्म और अपनी क्षेत्रीयता को लेकर आपस में लड़ रहे हैं। भारत को अपनी 3000 साल पुरानी उच्च नैतिक परंपरा वाली शिक्षा प्रणाली में नई क्रांति लाने की आवश्यकता है ताकि उसे आधुनिक शिक्षा में बदला जा सके।
दलाई लामा 1959 में चीन से भागकर भारत आ गए थे
लामा ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति राधाकृष्णन आधुनिक और प्राचीन वैदिक शिक्षा, संस्कृति और परंपरा का मिश्रण हैं। जब उनसे पूछा गया कि वे हमेशा खुश कैसे रहते हैं, तो उन्होंने मजाक में कहा कि खुश रहने के लिए उनके पास विशेष गोलियां हैं। उन्होंने कहा, “व्यक्ति को एक दुश्मन को सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के रूप में लेना चाहिए। वह कई बार चीन के गुस्से और उसके डर को लेकर चिंतित रहते थे लेकिन एक तिब्बती और बौद्ध होने के नाते उन्हें कभी भी गुस्सा नहीं आया।” दलाई लामा 1959 में चीन से भागकर भारत आ गए थे।