नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि अगर मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर कार्रवाई नहीं की जाती है, तो संविधान अपना महत्व खो देगा। कोर्ट ने कहा- जीवन, स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति और निष्पक्ष न्याय जैसे मौलिक अधिकार नागरिकों को संविधान से मिले हैं और राज्य इन पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता। बेंच ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसकी पत्नी और बेटी के साथ जुलाई, 2016 में बुलंदशहर के नजदीक हाईवे पर सामूहिक बलात्कार हुआ था।
इस मामले पर उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आजम खान के विवादित बयान से उपजे विवाद पर टिप्पणी करते हुए, जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने कहा, “राज्य के अधिकारों का प्रयोग करने वाले किसी व्यक्ति को नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। अगर लोगों के मूल अधिकारों की रक्षा नहीं की गई, तो संविधान अपना महत्व खो देगा।”
अभिव्यक्ति की आजादी के साथ कर्तव्य भी जुड़े
आजम खान ने सामूहिक बलात्कार की घटना को राजनीतिक साजिश का हिस्सा कहा था। बाद में उन्होंने शीर्ष अदालत से बिना शर्त माफी मांगी थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया था। अदालत ने कहा कि एक मंत्री, जिसने संविधान के अनुसार सभी प्रकार के लोगों के लिए सही तरीके से काम करने की शपथ ली है, उसे बोलते समय अपनी शपथ का ध्यान रखना होगा। बेंच ने कहा- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मंत्री को बयान देने का स्वतंत्र अधिकार नहीं देती है, जो पीड़ित के जीवन और निष्पक्ष न्याय के अधिकार को संकट में डाल दे।